पुरातत्वविद के के मोहम्मद बाले, केवल एक म्यूजियम में है अकबर और शाहजहां की मूर्ति

आर्कियोलॉजिस्‍ट यानी खुदाई करके ऐतिहासिक तथ्यों के सुबूत इकट्ठे करना, अपनी धरोहरों और विरासतों को दुनिया के सामने लाना. ऐसे ही देश के जाने-माने पुरातत्वविद हैं के के मोहम्मद, जिनका कहना है इंसान को जमीन से जुड़े रहना चाहिए और जो जमीन से जुड़े रहते हैं वह अक्सर गरीब लोग होते हैं. अयोध्या से लेकर अकबर के इबादतखाने तक की खोज करने वाले देश के जाने-माने पुरातत्‍वशास्त्री केके मोहम्मद से बात की ‘आवाज द वायस’ हिंदी के संपादक मलिक असगर हाशमी ने. पेश हैं उसके मुख्य अंशः-

सवाल: आपके नरम स्‍वभाव का क्या राज है. इस दर्जे पर आने के बाद न जाने लोग कहां चले जाते है.

केके मोहम्मदः मैं जमीन से जुडा हूं और जमीन से ताल्लुक रखता हूं. मैं बुनियादी तौर पर आर्कियोलॉजिस्‍ट हूं. उसका काम ही खुदाई करना है. खुदाई करने का मतलब है कि आपको जमीन से जुड़े रहना चाहिए. जो जमीन से जुड़े रहते हैं वह अक्सर गरीब लोग होते हैं. उनसे मैं हमेशा तालुकात रखता था और जरा हमदर्दी भी.

सिर्फ हमदर्दी ही नहीं. मैं उनके लिए कुछ काम भी करता हूं, मेरे परिवार के बड़े लोग भी ऐसा ही करते थे. मैंने भी वहीं बरकरार रखा है. जब भी उनको परमानेंट करने का मौका मिलता हैं, मैं सरकारी दफ्तर में उनकी सेवा स्थायी कर देता हूं. गोवा में मैंने काफी लोगों को परमानेंट करवाया. इसके बाद आगरा, पटना और मध्य प्रदेश में भी कई जगह इन लोगों की परमानेंट जॉब करवाई. मैं गरीब लोगों से बहुत अच्छे तालुकात रखता हूं.

सवाल: आपकी पारिवारिक पृष्ठभूमि क्‍या है?

केके मोहम्मदः मेरा एक मध्यवर्गीय परिवार है. मेरे पिताजी का जीवन काफी मशक्कत से गुजरा. हालांकि जब उनकी वित्तीय स्थिति अच्छी हो गई, तो वह लोगों की मदद करते थे. मेरे परिवार रबी उल अव्वल के महीने में 100बच्चों को खिलाता था. 1956या 60के दशक में एक महीना पूरा शहर शुक्रवार को यतीम बच्चों की खाना खिलाता था. मैं भी दूसरे तरीके से बच्चों की मदद करता था.

जब मैं दिल्ली में था, हम पांच स्कूल चलाया करते थे. तंबूवाला स्कूल, जो स्लम वाला स्कूल होता था. उनका पूरा खाना और यूनिफार्म फ्री में दिया जाता था. इसके लिए मुझे सीएनए-आइबीएन वालों ने अमिताभ बच्चन के हाथों एक अवार्ड भी दिलवाया. उसके बाद वह और मशहूर हो गया, जब इन बच्‍चों के पास जब अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा भी आए.

सवाल: आपकी पहल पर ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने काम किया था या आपने.

केके मोहम्मद: यह आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया का काम नहीं है. मेरा पर्सनल काम है. कुछ लोगों ने अपोज भी किया, जहां पर भी मैं जाता हूं, वहां कुछ करता हूं. एक अधिकारी समाज के लिए बहुत कुछ कर सकता है.

सवाल: आपने अलीगढ़ से मास्टर डिग्री की, फिर कैरियर की शुरुआत भी अलीगढ़ से हुई. एएमयू का सफर कैसा रहा?

केके मोहम्मदः अलीगढ़ से एएम के बाद रिसर्च करना चाहता था, क्योंकि मैं सेकेंड टॉपर भी था. मुझे पीएचडी में एडमिशन और स्कॉलरशिप मिलना चाहिए था, लेकिन मुझे नहीं दिया. हालांकि जिनके मुझसे 12मार्क्‍स कम थे, उनको दिया. इस ज्यादती के बाद मैंने अलीगढ़ छोड़ दिया. फिर मेरा फर्स्‍ट प्रिफ्रेंस आर्कियोलॉजी था और मुझे एडमिशन मिल गया.

उस समय मेरा फर्स्ट अपॉइंटमेंट भी अलीगढ़ में ही हुआ और एक साल के अंदर मैं असिस्‍टेंट आर्कियोलॉजी बन गया. फिर मैंने बहुत जबरदस्त दो खोजें कीं. एक था अकबर का इबादतखाने की डिस्कवरी. इबादतखाना वह जगह है, जिसे आप सेक्‍यूलर इंडिया की नर्सरी कह सकते है. वह सभी मजहब के लोगों बुलाकर बहस करवाता था. उसके बाद अकबर ने दीन-ए-इलाही चलाया. वहां पर चर्च भी बनवाया था.

वह चर्च भी मैंने खुदाई करके ढूंढ निकाला और यह वही जगह है इसको साबित भी किया. उस जमाने में फोटोग्राफी तो नहीं थी, लेकिन उस जमाने में जो भी मेजर इंसीडेंट रहा, उसकी पेंटिंग बनाई जाती थी. ऐसे चित्र पश्चिमी देशों हैं या फिर प्रकाशित हुई है. उससे खुदाई करके जमीन के अंदर से निकाला और मिलाया तो देखा बिल्कुल फिट बैठ गया. यह मेरा एक बहुत बड़ा योगदान था उस जमाने में.

सवाल: खुदाई और संरक्षण आपका फील्‍ड है. यह खुदाई क्‍या चीज है और आप क्‍या खोदते है?

केके मोहम्मदः यह बहुत अच्छा दिलचस्प विषय है, क्योंकि आप जितने इसके अंदर जाएंगे, आपको उतना ही मजा आएगा. पहले हम लोगों को यह पता नहीं था कि छठी सदी ईसापूर्व तक की भारत का इतिहास कैसा रहा होगा या उसके पीछे क्या था, यह किसी को पता नहीं था. जैसे हडप्पा मोहनजोदड़ो के बारे में किसी को भी नहीं पता था. उस जमाने के जो इतिहासकार थे उनको भी नहीं पता था कि सिर्फ ईसा से ही छह सदी पहले यानी बुद्ध के पहले क्या हुआ था. लेकिन हड़प्‍पा और मोहनजोदड़ो को खोजा गया, उसमें से कुछ चीजें ऐसी मिली, जिससे वहां के बारे में पता चला.

वह चीजें जहां सुमेरियन या मेसोपेटोमियन कल्चर था, उससे एसोसिएशन था वहां डेटिंग किया हुआ था. डेटिंग इसलिए किया था उनका एक तीन भाषाओं वाला लेख मिला था. उसी वजह से उनको यह पता चला यह 2600ईसापूर्व का है. इसका मतलब यह है और वही चीज यहां पर भी मिली. तो लोगों को पता चला कि हमारा हड़प्‍पा और मोहनजोदड़ो, जिसे हम 2600ईसापूर्व का समझ रहे थे वह तो असल में उससे भी 2000साल पुरानी है. यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी, जो आप कह सकते हैं यूरेका मोमेंट ऑफ इंडियन हिस्ट्री, जिसे पुरातत्वविदों ने खोजकर निकाला.

इसी तरह, हस्तिनापुर एक्‍सकेवेशन जो बीपी लाल साहब ने किया था. फतेहपुर सीकरी का एक्‍सकेवेशन इसी तरीके से किया. खोदकर निकाला, फिर उसको पेंटिंग से कंपेयर किया, कुछ उनके जमाने की किताबें थीं, उससे मिलान किया. इसी तरीके से हम एक नया इतिहास तैयार करते हैं और वह गलत नहीं हो सकता है. हिस्‍ट्री में आप इंटरप्रिटेशन दे सकते हैं, लेकिन आर्कियोलॉजी में सुबूत खोदकर निकालते हैं.

सवाल: जो आपने खोदकर निकाला, उसको संरक्षण कैसे देंगे. साथ ही संरक्षण की जरूरत है और क्‍यों जरूरत है?

केके मोहम्मदः बहुत ज्‍यादा जरूरत है. बहुत-सी जगहें आपको टूटी-फूटी मिलेगी. मैंने फतेहपुर सीकरी में 10साल नेतृत्व किया है. एक्‍सक्‍वेशन में जो जमीन के अंदर से चीजें मिलती है, उसका आपको संरक्षण करना चाहिए. एक तो यह है कि उसको वाटर टाइट नहीं करना पड़ेगा, क्योंकि वह बरसात में खुली रहेगी तो उसको बचाने के लिए आपको कोशिश करनी पड़ेगी. मसलन, उस जमाने के जो उमरा थे, अकबर के उमरा, उन लोगों के मकानात हम लोगों ने ढूंढ निकाला और उसी तरीके से अस्तबल ढूंढ निकाले है, जहां घोड़े को रखते थे.

यह सब जमींदोज हो चुके थे, एक हद तक संरक्षण और संवर्धन यह दोनों काम आपको करना पड़ेगा. जैसे बटेश्वर चंबल के अंदर थे. बटेश्वर आगरा की चंबल घाटी में हैं. यहां के जो डकैत थे, उनमें निर्भय सिंह गुज्जर नाम का बहुत बड़ा डाकू था. उस जमाने में, उनसे मिलकर उनकी पूरी मदद लेकर काम शुरू किया और एक ही मंदिर को जो चंबल में था, उसे खड़ा किया. फतेहपुर सीकरी, इसी तरह से ताजमहल में जब था, उसके कंर्जवेशन का काम किया, उसी तरीके से आपको संरक्षण का काम करते रहना पड़ेगा.

सवाल: ताजमहल में आपने बहुत काम किया है. उसका तजुर्बा बताइए. चंबल का आपने जिक्र किया, उसी तरह इबादतगाहों को लेकन आपने क्या-क्‍या किया.

केके मोहम्मदः 2008में जब मैं दिल्‍ली में था तो जो महत्वपूर्ण 45स्मारक  थे उनका काम मैं देख रहा था. 2010में कॉमनवेल्थ गेम्स से पहले सारी जगह ठीक-ठाक करनी थी. उस समय बहुत सारे टूरिस्‍ट बाहर से आने थे. तो उस समय कई चीजों को बहुत आकर्षक बनाया गया. यह सब मैंने काम समय से पहले ही पूरा कर लिया था.

लेकिन आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की बहुत सारी जमीन पर लोगों ने अतिक्रमण कर रखा था. आप ताज्‍जुब करेंगे मैंने इन चार सालों में 40एकड़ जमीन को लोगों से छुड़वा कर आर्कियोलॉकिल सर्वे ऑफ इंडिया की प्रॉपर्टी बना दिया. हुमायूं के मकबरे के सामने ही 12एकड़ जमीन थी, सीरी फोर्ट, जिसके दो हिस्से हैं एक माहमोदी मस्जिद है, दूसरा पंचशील. उसमें सिर्फ पूरा यह एनक्रोचमेंट निकाला और उसके बाद गार्डन बनाया. उसी तरीके से यह किला राय पिथौरा से एनक्रोचमेंट हटवाया.

लाल किले के सामने एमसीडी की जगह, जहां टिकट वाला खड़ा होता था. तीन एकड़ जमीन वहीं पर एमसीडी की प्रॉपर्टी थी, उसे हटवाकर बैरिकेडिंग कर दी. उसके बाद एमसीडी ने क्लेम करते हुए उसे तोड़ने के लिए कहा. पर अभी हमारे पास है. फिर मैंने वहां एक म्यूजियम बनाया. रिप्लिका म्‍यूजियम यह है कि एक बाहर के आदमी आएंगे तो वह पहले कुतुबमीनार देखेंगे, फिर हुमायूं का मकबरा देखने जाएंगे, लाल किला जाएंगे.

इसके बाद आगरा जाइए, ताजमहल, आगरा फोर्ट, फतेहपुर सीकरी जो मुगल मोनूमेंट है. जयपुर जाइए आप कहेंगे राजपूत मोनूमेंट है, लेकिन एसेंशियली वह मुगल बॉडी में थे, लेकिन जो हमारे कल्चर सिविलाइजेशन के हिंदू बुद्धिस्ट कल्चर है. उसके बहुत ही अनमोल भित्तिचित्र हैं. अजंता एलोरा, महाबलिपुरम समेत कई मोन्‍यूमेंस के रिप्लिका बनाकर वह सीरीफोर्ट ऑडिटोरियम के पीछे एक जगह है, वहां एक म्‍यूजियम बनाया.

वहां डीडीए का क्‍लब था. वहां अजीत कौर अर्पणा कौर दो बहुत बड़े सोशल एक्टिविस्ट और पेंटर भी है. उन लोगों ने 21 फाइल करके वह जगह हमको मिली, जिसको हमने रिप्लिका म्‍यूजियम बना दिया. जिसमें आप पूरे इंडिया देख सकते है. इस म्यूजियम में अकबर भी है, शाहजहां भी है, क्योंकि अकबर या शाहजहां की मूर्ति आपको कहीं नहीं मिलेगी.

सवाल: आपने फतेहपुर सीकरी का जिक्र किया था और पेंटिंग के जरिए अलग तरह से प्रदर्शित किया था, वह कौन सी पेंटिंग थी.

केके मोहम्मदः अकबर के इबादतखाने में जो चर्चा होती थी अलग-अलग क्षेत्रों के लोगों से उसमें दो खास थे. एक फादर रूडोल्‍फ पादरी. यह इटली से आए हुए थे. दूसरे फादर मंजर, जो स्पेन से आए थे. फादर रुडोल्फ नाम भी वहां दिया है. अफराज बूद पादरी रडल्‍फ ऐसा करके उसमें फारसी की इबारत भी उस पेंटिंग में है. जब मैं गया था पूरा एक किला था.

किले के बारे में अकबरनामा में भी डिस्क्रिप्शन है और तवारीख में भी, जो बदायूंनी ने डिस्क्रिप्शन दिया है. बहुत सारे डिस्कशन के आधार पर हम लोगों ने उसको आईडेंटिफाइड किया था. मेरे से पहले रिजवी साहब थे, उन्‍होंने भी आइडेंटिफाइ किया था. उनसे पहले शहीद अहमद मरारवी करके भी थे, जिन्होंने 1906में इसको आइडेंटिफाइ किया था. लेकिन उनके पास इसको लेकर कोई सबूत नहीं था. मैंने भी इसको लेकर ही आईडेंटिफाई किया, लेकिन उनको सबूत चाहिए था, तो उसके लिए मैंने पेंटिंग निकाली.

यह पेंटिंग भी अतर अब्‍बास रिजवी साहब ने जरूर देखी होगा. यह माउंट भी और किला भी देखा है, लेकिन वे आर्कियोलॉजिस्‍ट नहीं थे, तो एक्‍सक्‍वेशन नहीं कर पाए. कनेक्शन भी नहीं मिल पाया, जो मिलना चाहिए, मैंने मौलाना आजाद लाइब्रेरी में एक पेंटिंग देखी, जो बिल्कुल किले के जैसी लगी. उसमें सिर्फ तीन आर्चिज दिख रहे है, पेंटिंग में, उस साइट पर भी था. एक पवेलियन था.

वह गिरा हुआ था. वह उसी तरीके से बैठा हुआ है. एक दीवार थी, पेंटिंग में वह बिल्कुल खड़ी हुआ थी. उसी से मुझे लगा यह बिल्कुल सही है. फिर मैंने 2साल दिए. इसको पूरा धीरे-धीरे एक्‍सवेशन करना पड़ता है कभी सर्जिकल नाइफ से तो कभी ब्रश से. वह करके मैंने पूरा निकाला, बिल्कुल जैसे पेंटिंग में था, उसी तरीके का एक स्ट्रक्चर मुझे पूरा मिल गया अब सिर्जना ने इसको अप्रूव किया उस जमाने में टाइम्स ऑफ इंडिया में यह बहुत जोर-शोर से आया, तो अलीगढ़ के ही कुछ बड़े हिस्टोरियन, जिनसे पहले मेरे ताल्लुकात ठीक नहीं थे, उन लोगों ने भरपूर कोशिश की, इसको झूठा साबित करने की, लेकिन सबूत इतने थे कि वे कुछ नहीं कर पाए.