रानी विक्टोरिया के फैसले को चुनौती देकर ‘नवाब’ बनीं थी बंगाली मुस्लिम रानी विक्टोरिया के फैसले को चुनौती देकर ‘नवाब’ बनीं थी बंगाली मुस्लिम फैजुन्निसा

रानी विक्टोरिया के फैसले को चुनौती देकर ‘नवाब’ बनीं थी बंगाली मुस्लिम फैजुन्निसा

प्रसिद्ध नारीवादी उर्दू कवि किश्वर नाहिद लिखते हैं, “समय से पहले हमारे सामने एक महिला का प्रकाशित होना एक क्रांतिकारी कार्य था. ” हम शायद ही इस तथ्य की सराहना करते हों कि हमारे पुरखे-पुरखिनों ने हमें सभ्यता के इस बिंदु तक लाने के लिए क्या-क्या किया होगा.  यह अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है कि प्रगति एक यात्रा है और हमसे पहले के लोग उन अधिकारों के लड़े, जिनकी हमारी नजरों में अब बहुत अहमियत नहीं है.  

औपनिवेशिक बंगाल में 19वीं सदी के दौरान एक मुस्लिम महिला जमींदार फैजुन्निसा चौधुरानी का जिक्र मिलता है.  उनके बारे में जिला मजिस्ट्रेट डगलस ने ब्रिटेन की रानी विक्टोरिया को उनके उत्कृष्ट सामाजिक कार्यों से प्रेरित होकर एक सम्मान से पुरस्कृत करने की सिफारिश की थी.  डगलस ने लंदन में अधिकारियों को लिखे एक पत्र में उल्लेख किया था कि फैजुन्निसा के लिए ‘नवाब’ की उपाधि उपयुक्त रहेगी.  

बंगाली मुसलमान हो गए खफा

एक मर्दाना शीर्षक वाली पदवी के लिए किसी मुस्लिम महिला के लिए सिफारिश की इस खबर ने रूढ़िवादी और साथ ही बंगाल के उदार मुस्लिमों को भी नाराज कर दिया.  बंगाल के मुसलमानों ने रानी विक्टोरिया को एक याचिका लिखी और मांग की कि एक महिला को नवाब की उपाधि से सम्मानित नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि ऐसी पदवी केवल पुरुषों के लिए है.  

‘बेगम’ का ओहदा ठुकराया

इस याचिका पर विचार करते हुए, महारानी विक्टोरिया ने फैजुन्निसा के लिए ‘बेगम’ की उपाधि से सम्मानित करने का निर्णय किया, यह किसी नवाब की पत्नी के लिए आमतौर पर इस्तेमाल किया जाने वाला एक स्त्रैण शीर्षक था.  यह ध्यान देने योग्य बात है कि उस समय तक मुस्लिम समाज में एक महिला और यहां तक कि भोपाल की महिला शासकों, जो औपनिवेशिक भारत की सबसे बड़ी रियासतों में से एक थी, के लिए भी एक मर्दाना उपाधि स्वीकार नहीं की गई और ‘बेगम’ का इस्तेमाल किया गया, न कि नवाब की पदवी.  

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नवाब फैजुन्निसा 


इस कहानी ने उस समय एक दिलचस्प और क्रांतिकारी मोड़ ले लिया, जब फैजुन्निसा ने रानी विक्टोरिया द्वारा निश्चित ‘बेगम’ की उपाधि को ठुकरा दिया.  उन्होंने तर्क दिया कि एक राज्य की सफल शासक और ‘क्राउन’ को टैक्स देने वाली होने के बावजूद सिर्फ महिला होने के कारण उनके साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता.  फिर यह मुद्दा बड़े विवाद में बदल गया कि फैजुन्निसा धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रूढ़िवाद के सामने नहीं झुकेगी.  

ब्रिटिश संसद ने फैजुन्निसा को बनाया ‘नवाब’

बंगाली मुसलमान, सरकार को ‘नवाब’ की उपाधि न देने के लिए मजबूर कर रहे थे.  अंत में ब्रिटिश संसद को हस्तक्षेप करना पड़ा और मामले का फैजुन्निसा के पक्ष में समाधान करना पड़ा.  इस प्रकार फैजुन्निसा 1889 में नवाब फैजुन्निसा बन गईं.  यह एक मुस्लिम महिता के लिए तब दुर्लभ उपलब्धि थी और पितृसत्तात्मक बंगाली मुस्लिम समाज के सामने उनकी एक बड़ी जीत भी.

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नवाब फैजुन्निसा के महल का मत्था



1834 में पैदा हुई फैजुन्निसा ने 1865 में शादी के पांच साल बाद मोहम्मद गाजी चौधुरी से तलाक ले लिया, क्योंकि उसने बहुविवाह कर रखे थे.  यह उन्नीसवीं सदी के मध्य में एक मुस्लिम महिला का दूसरी पत्नी का दर्जा स्वीकार न करने का बगावती तेवर था.  इसके अलावा भी उन्होंने अपने पूर्व पति को एक विसंगति के लिए अदालत में घसीट लिया था.  अपने पिता और पूर्व पति से फैजुन्निसा को एक जमींदारी मिली थी, उस पर वे अपनी दो बेटियों की एकल मां के रूप में राज करती थीं.

मुस्लिम लड़कियों के लिए पहला स्कूल

फैजुन्निसा ने 1873 में मुस्लिम लड़कियों के लिए बंगाल का पहला स्कूल स्थापित किया, जिसमें शिक्षा का माध्यम बंगाली था, जो बंगाली मुसलमानों के लिए एक और आदर्श विचार था.  जबकि बंगाली मुसलमान तब फारसी और उर्दू को श्रेष्ठ भाषा मानते थे.  बंगाली संस्कृति उनके दिल के करीब थी और उन्होंने संभ्रांत मुस्लिम तबके में सामाजिक स्वीकृति पाने के लिए फारसी संस्कृति को स्वीकार नहीं किया.   

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 नवाब फैजुन्निसा की डाइनिंग टेबल 

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 नवाब फैजुन्निसा की चूड़ियां 


उन्होंने 1876 में एक मुस्लिम महिला रूप जलाल द्वारा लिखित पहली बंगाली पुस्तक को प्रकाशित करवाया.  पुस्तक परिचय में उन्होंने दावा किया कि उनका जीवन भी कथा साहित्स से प्रेरित था.  पुस्तक की इस कहानी का पुरुष नायक एक राजकुमार है, जो दो महिलाओं से शादी करता है.  रूप जलाल एक महिला की उन शारीरिक और भावनात्मक इच्छाओं का जिक्र करती हैं कि जब उसका पति या प्रेमी उसके पास नहीं जाता है.  अरबी, फारसी, संस्कृत और बंगाली में प्रवीण मुस्लिम महिला के बावजूद बंगाली में लिखने और पढ़ने की उनकी पसंद, बंगाली संस्कृति के प्रति उनके प्रेम को दर्शाती है.

ऐसी फैजुन्निसा का जीवन वर्तमान महिलाओं के लिए एक प्रेरणा है.